अधजली खिड़की व मकान लेखनी प्रतियोगिता -13-Jul-2022
आग आग इस तरह की आवाजें आर रही थी मोहल्ले लोग एक मकान के पा स इकट्ठे होगये । यह मकान एक बुढि़या का था। वह इस मकान में बहुत दिनौ से अकेली रहती थी।
सब लोग आग को बुझाने की कोशिश कर यहे थे वह एक कच्चा मकान था उसके आगे छप्पर लगा हुआ था। आग शायद छप्पर में ही लगी थी। जब तक सबने मिलकर आग पर काबू पाया वह जलकर खाक होगया था। बुढि़या भी मकान के अन्दर ही थी।
उस मकान में एक खिड़की थी। बुढि़या ने उस खिड़की से निकलने की नाकाम कोशिश की थी परन्तु वह खिड़की भी आधी जल चुकी थी और वह बुढि़या उह खिड़की में फसकर दम घुटने से मर चुकी थी।
जब लोगौ ने अध जली खिड़की से बुढि़या को निकाला तब लोगौ ने देखि कि बुढि़या ने अपनी छाती से कुछ चिपका रखा है लोगौ ने सोचा शायद कुछ सोना चाँदी होगा जिसे वह जलने से बचाना चाहती थी।
परन्तु जब उसे निकाल कर देखा तो लोगौ को बहुत आश्चर्य हुआ। क्यौकि वह उसके बेटे की तस्वीर थी जिसे वह बुढि़या छाती से लगाकर जलने से बचा रही थी।
यह होता है माँ का दिल। वह आज भी अपने बेटे की तस्वीर को जलने से बचा रही थी। जबकि बेटा बहुत ही निकम्मा था जो अकेली माँ को छोड़कर भाग गया था।
धरम पुर एक छोटा सा गाँव है वहाँ पर बीर सिह अपनी पत्नी के साथ रहते थे वह गाँव से सात आठ किलोमीटर एक प्राईवेट स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल के बाद गाँव में ही बच्चौ को ट्यूशन पढाते थे।
इस तरह बीर सिंह के परिवार का गुजारा हो रहा था। उनका एक बेटा था महेश । महेश अपने पापा के साथ ही स्कूल जाता था। महेश की फीस भी नहीं लगती थी। इस तरह उनका बेटा भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहा था।
महेश पढ़कर एक बैंक में एकाउन्टैन्ट लग गया उसकी पोस्टिग मुम्बई में हुई। महेश की अच्छी नौकरी होने के कारण शादी भी अच्छी होगयी।
महेश की पत्नी भी नौकरी करती थी। इसलिए वह महेश के साथ ही रहती थी। इस तरह बीर सिंह का परिवार सही तरह सैट था। अब उनको किसी तरह की चिन्ता नहीं थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था।
एक दिन बीर सिंह की तबियत खराब होगयी। बीर सिंह को पैरालाइसिस का अटैक आगया और उनका एक हाथ और एक पैर ने काम करना बन्द कर दिया। अब उनका स्कूल जाना भी बन्द होगया।
अब वह घर पर ही रहते थे । कुछ समय बाद बीर सिंह स्वर्ग सिधार गये।अब उनकी पत्नी अकेली ही रह गयी। वह एक दो बार बेटे के साथ मुम्बई गयी लेकिन उनका मन नहीं लगा और वह बापिस आगयी और अपने मकान में ही अकेली रहने लगी।
उनकी बहू के साथ बनती नहीं थी अतः वह वहाँ जाती नहीं थी। अब वह अकेली ही रहती थी । इसके बाद बेटा मकान भी बेचकर चलागया था। अब वह एक पुराने कच्चे मकान में रहती थी
आज रात उसके मकान मे आग लग गयी थी और वह उससे निकल ही नही सकी और उसकी जलकर मौत होगयी थी। उस बुढि़या ने अपने बेटे की तस्वीर नहीं जलने दी जबकि वह स्वयं जल गयी।
यह होता है माँ का प्यार । बेटा चाहे कितना बुरा होजाय परन्तु माँ उसका कभी बुरा नही सोचती है। वह उसकी सलामती की दुआ करती है।
गाँव वालौ ने ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया। महेश तो बाद में आया।
अब वहाँ केवल अध जला मकान व अधजली खिड़कियां बची थी ।
दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना
नरेश शर्मा " पचौरी "
13/07
Kusam Sharma
19-Jul-2022 04:31 PM
Nice
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Rahman
14-Jul-2022 10:31 PM
Nyc
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Chudhary
14-Jul-2022 10:05 PM
Nice
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